इजरायल और आतंकवादी संगठन हमास के बीच छिड़ी भयानक जंग ने एशियाई महाद्वीप के अन्य देशों को अचंभित और चिंतित कर दिया है । एशियाई महाद्वीप के मध्य पूर्व क्षेत्र में स्थित इजरायल पश्चिम में भूमध्य सागर उत्तर में लेबनान और सीरिया, पूर्व में जॉर्डन, दक्षिण पश्चिम में मिस्र और दक्षिण में लाल सागर से घिरा हुआ है।
हमास यानि हरकत अल- मुकावामा अल-इस्लामिया या “इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन” फिलिस्तीनी सुन्नी मुसलमानों की एक सशस्त्र संस्था है जो फ़िलिस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण की मुख्य पार्टी है। कहने को तो हमास एक गैर सरकारी संगठन है लेकिन आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त यह संगठन इजरायल पर खतरनाक ढंग से अप्रत्याशित आक्रमण कर एशियाई देशों में अशांति और अस्थिरता का माहौल पैदा कर दिया है ।
इजरायल पर हमास का आक्रमण इतना गोपनीय और खतरनाक था कि इजरायल की सुरक्षा प्रणाली भी इस आक्रमण को रोक पाने में विफल रही। परिणामस्वरूप इजरायल और हमास के बीच जारी जंग में इजरायल और गाजापट्टी की धरती हजारों लाखों बेगुनाहों के रक्त से सनी हुई नजर आ रही है ।
इस तरह की अमानवीय कृत्य मनुष्य के मानसिक विकारों की उपज है । दरअसल विश्व के ज्यादातर देशों की विदेशी नीति और नीयत स्पष्ट और साफ नहीं है। अमेरिका, चीन, रुस जैसे शक्तिशाली और सम्पन्न देश अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए समय-समय पर अनाप-शनाप गतिविधियों में शामिल होकर न्याय विरुद्ध घटनाओं को जन्म देने में बड़ी भूमिका निभाते हैं ।
विश्व स्तर पर मानवीय मूल्यों के पतन का मूल कारण वर्चस्व की लड़ाई ही है जिसकी आग में छोटे-छोटे देशों को अपनी आहुति देने की मजबूरी हो जाती । समाज, देश और विश्व पटल पर जितनी भी अवांछनीय घटनाएं होती हैं उसके पीछे वर्चस्व कायम रखने की लिप्सा और स्वार्थ सिद्ध करने की महत्वकांक्षा ही नजर आती है। इजरायल और हमास की मुख्य वजह हमास की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता है जो मानव जाति के लिए बेहद ख़तरनाक और विध्वंसकारी है ।
इजरायल को अपने देश की सुरक्षा के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाना मजबूरी है । लेकिन इस दांव-पेंच में जान-माल की जो क्षति हो रही है उसको सहन कर पाना बहुत मुश्किल है । भूख-प्यास से रोते-बिलखते बच्चे और बड़े-बुजुर्गों की दयनीय स्थिति देखकर मन द्रवित होना लाजिमी है । अपनी ही आंखों के सामने अपनों को खोने के बाद आंखों में छाई शून्यता का जो दृश्य इजरायल के लोगों में दिखाई दे रहा है वह बेहद दर्दनाक और स्तब्धकारी है ।
मानव मस्तिष्क में जब स्वार्थ और महत्वाकांक्षा का बीज अंकुरित होता है तो उसका परिणाम मानव जाति और मानवता के लिए घातक हो जाता है ।
चूंकि मानव सृष्टि का सजग प्राणी है लिहाजा हर तरह की वांछित – अवांछित क्रियाकलापों के लिए मानव स्वत: ही जिम्मेदार है । आज का मनुष्य जल-जंगल-जमीन की रक्षा करने की बजाय उसी का दोहन कर रहा है। झील, नदियां, महासागर, पर्वत – पहाड़ों पर कब्जे को लेकर भी मनुष्य अपना आपा खोता जा रहा है जिसकी वजह से वैचारिक मतभेद उभर कर सामने आ रहे हैं। यही मतभेद ही अवांछित क्रियाकलापों को जन्म दे रही है ।
भारत समेत विश्व के अनेक देश आतंकवाद से लड़ रहे हैं। वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो समर्थन, सहयोग और बढ़ावा दे रहे हैं । आतंकवाद के दुष्परिणामों से अनभिज्ञ कुछ देश आतंकवादी संगठनों को पाल-पोस भी रहे हैं उनका यह कदम अमानवीय कृत्य है। आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विश्व के सभी देशों को एक मत से एक साथ खड़ा होना चाहिए जिससे की इस लाइलाज बीमारी का अंत किया जा सके ।
आतंकवाद किसी धर्म, मजहब अथवा संप्रदाय का प्रवर्तक नहीं है। यह मनुष्य के विनाश का घातक हथियार है जो धीरे-धीरे पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले रहा है । समय रहते आतंकवाद पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इसकी गतिविधियां इजरायल – हमास जंग की तरह अंत्यंत विनाशकारी होगी जो मानव जीवन को तहस-नहस करने के लिए पर्याप्त होगा । विश्व समुदाय को अपनी चेतना जागृत करने की जरूरत है ।