हवन के बाद पुस्तक 'झरती ओस' का विमोचन
हवन के बाद पुस्तक 'झरती ओस' का विमोचन

हवन के बाद पुस्तक ‘झरती ओस’ का विमोचन

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श्रीराम भवन लालकुर्ती मेरठ में डा. यशोधरा शर्मा की पुस्तक झरती ओस कहानी संग्रह का विमोचन संस्कार भारती की साहित्यिक इकाई स्वामी विवेकानन्द इकाई के तत्वावधान में हुआ। कार्यक्रम से पूर्व वातावरण शुद्धि के लिए हवन किया गया।

पुस्तक का विमोचन डौली गुप्ता, डा.शंभू दत्त धीमान, लता बंसल, डा. जयभगवान सिंह, सुरेश छाबड़ा, डा. अरूणा पंवार, डा. रेखा गिरीश सहित सभी अतिथियों ने संयुक्त रूप से किया।आज, बदलते परिवेश में कहानियां जैसे लुप्त होती जा रही हैं, कारण चाहे जो भी हो, किन्तु कहानियों का सृजन न होने के कारण बच्चों में संस्कारों का स्तर गिरता जा रहा है।

ऐसे में चर्चित लेखिका डा. यशोधरा शर्मा ने अपनी कहानियों की अनूठी श्रृंखला झरती ओस पाठकों तक पहुंचाने का सराहनीय प्रयास किया है। उन्होंने अपनी कहानियों में दादा-दादी, नाना-नानी और मां द्वारा सुनाए जाने वाले किस्से-कहानियों के नैतिक मूल्यों के मनोरम दृश्य को पुन: आखों के सामने जीवंत कर दिया है। विमोचन के पश्चात दूसरे चरण में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।

गोष्ठी की शुरूआत मां सरस्वती के सम्मुख सभी अतिथियों द्वारा सामूहिक रूप से दीप प्रज्ज्वलित से हुई व मां शारदे की वंदना डा. सुदेश यादव दिव्य ने कुछ इस प्रकार की- तू है ज्ञानदाती तू ही शारदे मां, मुझे अपनी पूजा का अधिकार दे मां। डा. शोभा रतूडी ने कहा- उनकी घनी अलको की मनहर छटा, श्यामल मेघों की अद्भुत घटा। रचना वानिया ने सुनाया- सोना चांदी हीरे मोती हमारे किस काम के, हम तो दीवाने हैं बस तुम्हारे नाम के।

हवन के बाद पुस्तक 'झरती ओस' का विमोचन
कार्यक्रम में मौजूद अतिथिगण।

बीना मंगल ने सुनाया- हो जाती इस समाज में मेरी भी कभी उंची सोहरत, यदि कर लेता मैं भी उस बडे आदमी की बेटी से शादी। डा. प्रज्ञा शर्मा ने सुनाया-बद से बदतर बात हो गई, आज उनसे मुलाकात हो गई। अकांक्षा यादव ने पर्यावरण की रक्षा के जनमानस को जाग्रत करने का संदेश देते हुए कहा-आज अगर हम न संभले तो, कल हमको फिर रोना होगा। सब कुछ बदला बदला होगा मौसम नहीं सलौना होगा। राज रानी ने सुनाया- भटकती फिर रही है क्यूं तुझे क्या जिंदगानी चाहिए। स्वाति भाटिया ने सुनाया-रुठ जाए अगर दोनों अभी…प्यारी मुस्कान से फिर मनाएगा कौन।

चित्रा त्यागी ने सुनाया- जमी हंस रही, आसमां रो रहा है, जमाने में ये क्या, सितम हो रहा है। रेखा गिरीश ने सुनाया- नहीं खिलाड़ी हों जब तक दो, कैसे ‘खेला’ हो सकता है। कविता मधुर ने सुनाया-एक दुनिया दिलों की बसाया करो पास बैठो ज़रा गुनगुनाया करो। कार्यक्रम में जगदीश प्रसाद, मंगल सिंह मंगल, विजय प्रेमी, रामअवतार त्यागी, विनेश कौशिक, वीरेन्द्र अबोध, सुनील शर्मा, गायत्री शर्मा, श्रीराम भटट व सुदेश दिव्य आदि कवियों ने भी कविता पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन नीलम मिश्रा व कवि सुदेश दिव्य ने संयुक्त रूप से किया, व कार्यक्रम की संयोजन रचना वानिया ने किया।

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News Desk

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