होली एक ऐसा त्योहार है, जिसका इंतजार सभी को बेसब्री से रहता है। यह हिंदू धर्म के सबसे अहम और बड़े त्योहारों में से एक है, जिसे देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। रंगों का यह त्योहार अपने खानपान की वजह से भी काफी मशहूर है। होली का नाम आते ही लोगों के मन में सबसे पहले गुजिया और ठंडाई का ख्याल आता है। यह दोनों होली में बनाए जाने वाले अहम पकवानों में से एक हैं।
हालांकि, इन दोनों पकवानों के अलावा होली में एक और व्यंजन का स्वाद चखने को मिलता है। मालपुआ एक और ऐसा व्यंजन है, जिसे होली के बनाने का अपना अलग महत्व है। इसका नाम सुनते ही अक्सर लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। यह काफी हद तक पैपकेक की तरह होता है, जिसकी वजह से इसे पैनकेक का इंडियन वर्जन भी कहा जाता है। अगर आपको भी इसका स्वाद पसंद है, तो आज हम आपको बताएंगे इसका इतिहास और होली के साथ इसका कनेक्शन-
सबसे पुरानी भारतीय मिठाई
बात करें इसके इतिहास की, तो मालपुआ भारत की सबसे पुरानी मिठाई मानी जाती है। इसके जिक्र करीब 3000 साल पुराने वैदिक युग में मिलता है। 1500 ईसा पूर्व के वैदिक साहित्य (ऋग्वेद) में इसका लगातार उल्लेख मिलता है। उस समय, इसे अपुपा के नाम से जाना जाता था, जिसे जौ के आटे से बनाया जाता था।
इसे बनाने के लिए सबसे पहले इसे पानी में उबाला जाता था, फिर देसी घी में डीप फ्राई किया जाता था और आखिर में शहद में डुबोया जाता था। उस समय इस व्यंजन को केवल ‘प्रबुद्ध’ आत्माओं को ही दिया जाता था।
राजपूत और मालपुआ का कनेक्शन
यह बात तो हर कोई जानता है कि हम भारतीयों को मीठा खाना बहुत पसंद है। राजपूत भी इससे अछूते नहीं थे। ऐसे में उन्होंने मीठा खाने के अपने इस शौक के चलते मालपुए के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया। इसके लिए उन्होंने जौ की जगह पर गेहूं और शहद की बजाय गन्ने के रस का इस्तेमाल किया, लेकिन इसके स्वाद में कोई बदलाव महसूस नहीं हुआ। ऐसे में उन्होंने मालपुए में गुड़, इलायची, काली मिर्च, अदरक मिलाकर इसे छोटे फ्लैट केक का आकार दिया।