- राजेश अवस्थी (वरिष्ठ पत्रकार)
बिहार चुनाव को लेकर आमतौर पर यह धारणा है कि असदुद्दीन ओवैसी को इस बार ज्यादा महत्व नहीं मिलेगा। पिछली बार उनकी पार्टी के पांच विधायक जीत गए थे लेकिन इस बार नहीं जीत पाएंगे। ऐसा मानने का एक बड़ा कारण यह है कि इस बार बिहार में एनडीए के जीतने पर भाजपा का मुख्यमंत्री बनने की संभावना जताई जा रही है। आमतौर पर एनडीए की ओर से नीतीश कुमार दावेदार होते तो मुस्लिमों को चिंता नहीं रहती थी। लेकिन भाजपा का मुख्यमंत्री बनने की संभावना ने उनकी चिंता बढ़ा दी है। इस बात को ओवैसी भी समझ रहे हैं तभी उनकी पार्टी ने राजद और कांग्रेस दोनों से एप्रोच किया था कि उसे गठबंधन में शामिल किया जाए। राजद और कांग्रेस दोनों ने प्रस्ताव ठुकरा दिया।
बीते सोमवार को असदुद्दीन ओवैसी दरभंगा जिले के जाले विधानसभा में एक जनसभा के लिए पहुंचे थे। यहां उन्होंने एलान किया, ‘सीमांचल के बाद एआईएमआईएम अब मिथिलांचल क्षेत्र की चार सीटों- जाले, बिस्फी, केवटी और दरभंगा शहर में भी चुनाव लड़ेगी।’ मिथिलांचल की इन चारों सीटों पर मुस्लिम वोटरों की तादाद अच्छी-खासी है। लालू यादव की आरजेडी का पहले इन सीटों पर अच्छा-खासा दबदबा रह चुका है। आज भी महागठबंधन इन सीटों पर प्रभावशाली भूमिका में है। ओवैसी ने मिथिलांचल की जिन चारों सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है, उन सारी सीटों पर राजद पहले के चुनावों में जीत चुकी है।
इसी सभा में ओवैसी ने राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया को महागठबंधन में एआईएमआईएम को जगह नहीं देने पर खुली चुनौती भी दे डाली, जो मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण के दम पर बिहार में 15 साल शासन कर चुकी है। ओवैसी ने कहा, ‘हमनें 6 सीटें मांगी थी और मंत्री पद की भी मांग नहीं की। फिर भी वे हमसे बात करने के लिए राजी नहीं हैं। बिहार के लोगों को यह पता होना चाहिए कि मोदी-अमित शाह-नीतीश की सरकार को कौन रोकना चाहता है…सुन लो तेजस्वी, सुन लो आरजेडी के नेता…। तुम्हारी नादानी तुमको नुकसान पहुंचाएगी…तुम्हारा गुरूर तुमको कमजोर कर देगा। अगर आप बिहार में बीजेपी को रोकना चाहते हैं, तो आपको ओवैसी और अख्तरुल इमाम का हाथ पकड़ना होगा।’
अब ओवैसी राज्य में 30 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वे सीमांचल की सभी 24 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वहां उन्होंने उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी है। उन्होंने बहादुरगंज से मोहम्मद तौसिफ आलम और बायसी से गुलाम सरवर को उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा उन्होंने पूर्वी चंपारण की ढाका सीट पर राणा रंजीत को टिकट दिया है। वे मिथिलांचल की चार सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा है कि दरभंगा की शहर सीट के अलावा जाले से उम्मीदवार देंगे तो मधुबनी में बिस्फी से भी चुनाव लड़ेंगे। उन्होनें केउटी सीट से भी उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है। सीमांचल, मिथिलांचल, तिरहुत और सारण में अगर मुस्लिम बहुल सीटों पर वे मुस्लिम या मजबूत हिंदू उम्मीदवार उतारते हैं तो वे राजद और महागठबंधन की दूसरी पार्टियों को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।
भाजपा और उसके सहयोगी दलों को भी यह लग रहा है कि ओवैसी फैक्टर कहीं न कहीं, उनके सबसे बड़े सियासी विरोधी राजद और महागठबंधन को नुकसान पहुंचाएगा। मसलन, बिहार भाजपा के एक पदाधिकारी अरिमर्दन झा ने कहा, “मिथिलांचल में ओवैसी का बहुत ज्यादा प्रभाव तो नहीं है…लेकिन कुछ न कुछ असर तो जरूर डालेंगे।” इसी तरह से एलजेपी (रामविलास) के एक वरिष्ठ नेता प्रमोद कुमार झा का भी कहना है कि “मिथिलांचल में तो ओवैसी की अभी तक कोई चर्चा नहीं है। हालांकि, उनकी पार्टी चाहे जितना ही वोट काटे, नुकसान तो राजद का ही होना तय है…एनडीए को उनसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।”