हवा खि़लाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँ
हवा खि़लाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँ
हज़ाऱ मुश्किलें हैं फिर भी मुस्कराता हूँ
सलाम आँधियाँ करती हैं मेरे ज़ज़्बों को
इक दिया बुझ गया तो दूसरा जलाता हूँ
मेरी दीवानगी का हाल मुझसे मत पूछो
बुझे न प्यास तो शोलों से लिपट जाता हूँ
ज़माना लाख है दुश्मन कोई परवाह नहीं
किया है प्यार तो फिर अंत तक निभाता हूँ
ख़़ु़शी मनाइये यारों कि सफ़र जा़री है
ग़म नहीं है कि हर क़दम पे चोट खाता हूँ
खुली क़िताब की मानिंद ज़िंदगी मेरी
कोई पर्दा नहीं है कुछ नहीं छुपाता हूँ
अनेक शेर मेर ज़ाया हो गये फिर भी
रदीफ़, क़ाफ़िया, बहरेा वज़न निभाता हूँ
न मैं कबीर न ग़ालिब न मीर ,मोमिन ही
मिला जो ज़ख़्म ज़माने से वही गाता हूँ
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गमे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया
गमे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया
समंदर में गहरे उतरना सिखाया
अकेले थे पहले बहुत खुश थे लेकिन
तेरी आरज़़ू़ ने तड़पना सिखाया
बड़ी धूल थी मेरे चेहरे पे लेकिन
तेरी इक नज़र ने सँवरना सिखाया
कभी मैंने ख़ारों की परवा नहीं की
गुलों ने मुझे भी महकना सिखाया
लगी आग दिल में तो ख़ामोश रहकर
घटाओं ने मुझको बरसना सिखाया
भरोसा मुझे अपने ईमान पर है
मुझे ज़़ुल्म से जिसने लड़ना सिखाया
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उडी़ ख़बर कि शहर रोशनी में डूबा है
उडी़ ख़बर कि शहर रोशनी में डूबा है
गया क़रीब तो देखा कि महज़ धोखा है
बडे़ घरों की खिड़कियाँ कहाँ खुलें जल्दी
जिधर भी देखता हूँ हर तरफ़ अँधेरा है
उनके कुत्ते भी दूध पी के सो गये होंगे
मगर बच्चा बग़ल का दो दिनों से भूखा है
किसी ग़रीब की इमदाद कौन है करता
ख़याल नेक है लेकिन सवाल टेढा़ है ?
मेरी ज़बान पे ताले जडे़ ज़रूर अभी
मगर नज़र में गर्म खू़न उतर आता है
वहाँ वजी़र की बातों से फूल झरते हैं
यहाँ विकास की गंगा में रेत उड़ता है
किसी को दिल की बात भी बता नहीं सकता
यहाँ पे एक शख़्स भीड़ में अकेला है
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ग़रीबी से बढ़कर सज़ा ही नहीं है
ग़रीबी से बढ़कर सज़ा ही नहीं है
सुकूँ चार पल को मिला ही नहीं है
कहाँ ले के जाऊँ मैं फ़रियाद अपनी
ग़रीबों का कोई ख़ुदा ही नहीं है ?
मुझे फ़िक्ऱ उनकी है जिनके घरों में
कई दिन से चूल्हा जला ही नहीं है
मुहब्बत को भी लोग पैसों से तौलें
दिलों में भी अब कुछ बचा ही नहीं है
हकीमों को किस बात की फ़ीस दूँ फिर
मेरे मर्ज़ की जब दवा ही नहीं है ?
मेरे पास भी जिंदगी है यक़ीनन
मगर इसमें कोई मज़ा ही नहीं है
वही ग़म , वही अश्क ,दामन वही जब
लिखूँ क्या ग़ज़ल कुछ नया ही नहीं है
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अपनी खुशबू से मुअत्तर कर दे
अपनी खुशबू से मुअत्तर कर दे
एक अदना को मोतबर कर दे
तू ही इस कायनात का मालिक
मौला,क़तरे को समंदर कर दे
मेरी कश्ती भंवर में आयी है
तू जो चाहे तो बेख़तर कर दे
तेरे रहमो-करम पे ज़िंदा हूं
मेरा हर दर्द छूमंतर कर दे
मेरे चेहरे पे मुस्कराहट हो
जो थकन है उसे बाहर कर दे
प्यार के सामने घुटने टेके
मेरे दुश्मन को निरुत्तर कर दे
अब तो तूफ़ां का ही सहारा है
जो इधर से मुझे उधर कर दे
ये अंधेरा बड़ा भयावह है
नूर से अपने मुनव्वर कर दे
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