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चुनाव से पहले मतदाताओं की खामोशी क्या है मतलब?

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  • लोकसभा चुनाव प्रचार की सरगर्मियां तेज
  • मतदाता खामोश, सियासी पंडित ‘संकट’ में
  • तो क्या अब मंशा भांप पाना होगा कठिन सवाल

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। दूसरी ओर मतदाता खामोशी के साथ सत्ता पक्ष और विपक्ष के कार्यों, उनकी उपलब्धियों एवं जनता के प्रति उनके दृष्टिकोण का आकलन कर रहा है।

सन् 1977 के लोकसभा चुनाव में लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने लोकतंत्र और डिक्टेटरशिप का नारा बुलंद कर देशवासियों से वोट मांगे थे। इसी भांति 2024 के चुनाव में करप्शन और डिक्टेटरशिप प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है। भारतीय राजनीति के लिहाज से 2024 का लोकसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। इस चुनाव पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हैं। देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही चुनाव प्रचार में तेजी देखने को मिल रही है। पक्ष और विपक्ष में घमासान छिड़ गया है। आरोपों की नई नई बानगी देखने को मिल रही है। देश में करप्शन के आरोपों में ईडी की हिरासत में लिए अरविन्द केजरीवाल को लेकर अमेरिका और जर्मनी की गैर जरूरी टिप्पणियां भी देखने को मिल रही हैं। यह भी सुनने को मिल रहा है कि मोदी जीत गया तो यह देश का आखिरी चुनाव होगा। कांग्रेस के नेता आरोप लगा रहे है मोदी जीता तो रूस और चीन बन जायेगा भारत। मोदी कह रहे हैं कि करप्ट लोगों को किसी स्थिति में नहीं छोड़ेंगे।

इसी के साथ एक दूसरे के खिलाफ तीखे आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। सियासत के नए समीकरण बन रहे हैं और सभी सियासी दल अपने फायदे को देखकर एक दूसरे से गठजोड़ कर अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे हैं। भाजपा विरोधी दलों ने इंडिया गठबंधन के नाम से मोदी को चुनौती दी है। एनडीए अपने करिश्माईं नेता नरेंद्र मोदी की अगुवाई में इस बार 400 पार के नारे के साथ आगे बढ़ रहा है। इंडी गठबंधन से अनेक नेता निकलकर एनडीए में शामिल हो गए हैं वहीँ इंडी गठबंधन में आपसी फूट चौक चौराहों पर देखने को मिल रही है।

लोगों में मोदी की गारंटी के प्रति दीवानगी देखने को मिल रही है। दोनों पक्ष अपनी गारंटियां दे रहे हैं, मगर लोग मोदी की गारंटी पर अधिक भरोसा कर रहे हैं। मोदी विरोधी दलों में प्रधानमंत्री के नाम पर कोई सर्वसम्मति नहीं बनी है। इंडिया गठबंधन के रचयिता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर एनडीए के पाले में आ चुके है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता दीदी ने बंगाल में कांग्रेस को छिटक दिया है। यूपी में जयंत चौधरी अपनी पार्टी रालोद को इंडिया से निकालकर एनडीए में ले आये हैं।

मायावती की बसपा अकेले चुनावी जंग में दांव आजमाने के लिए कूद गई है, जिसका सीधा नुक्सान इंडिया गठबंधन को उठाना होगा। केरल में इंडिया के घटक आपस में ही टकरा रहे हैं।लोकसभा चुनाव में विपक्ष में पूरी तरह एका नहीं होने के कारण आधे राज्यों में बहुकोणीय चुनावी संघर्ष की सम्भावना बलवती हो गई है।

मौजूदा सियासी माहौल के मद्देनजर उत्तर प्रदेश, आंध्र, पश्चिमी बंगाल,हरियाणा, उड़ीसा, पंजाब, तेलंगाना,तमिलनाडु और केरल जैसे सबों में जहाँ लोकसभा की 200 से अधिक सीटें हैं, में बहुकोणीय मुकाबले के आसार हैं। वहीं गुजरात, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हिमाचल और राजस्थान में सीधा मुकाबला है। देश के सबसे बड़े और 80 सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने महागठबंधन बना कर चुनौती दी है। इस महागठबंधन में बसपा शामिल नहीं है। सीटों के हिसाब से देश के दूसरे सब से बड़े सूबे महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं। आंध्र में कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस और एनडीए ने अलग अलग राह पकड़ी है। इस राज्य में भी बहुकोणीय संघर्ष की सम्भावना है।

चौथा बड़ा राज्य पश्चिमी बंगाल है। यहाँ भी लोकसभा की 42 सीटें हैं। यहां ममता की पार्टी का कांग्रेस से गठजोड़ नहीं हुआ है। बंगाल में तृणमूल और भाजपा में सीधा मुकाबला है। यहाँ भी बहुकोणीय संघर्ष होने की सम्भावना है। इसके बाद तमिलनाडु में लोकसभा की 39 और कर्नाटक में 28 सीटें है। पिछले चुनाव में गुजरात की सभी 26, हिमाचल की सभी चार, उत्तराखंड की पांचों और राजस्थान की सभी 25 सीटों सहित दिल्ली की सभी सातों सीटें भाजपा को मिली थीं।

बहरहाल, इस चुनाव में पीएम मोदी की गारंटियों पर मतदाताओं ने अधिक भरोसा किया अथवा विपक्ष का पीएम मोदी पर लगातार हमला और उन पर मैच फिक्सिंग के आरोप मतदाताओं को अपनी तरफ खींच पाए, यह तो चार जून को चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद ही पता चल पाएगा।

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Neha Singh

नेहा सिंह इंटर्न डिजिटल पत्रकार हैं। अनुभव की सीढ़ियां चढ़ने का प्रयत्न जारी है। ई-रेडियो इंडिया में वेबसाइट अपडेशन का काम कर रही हैं। कभी-कभी एंकरिंग में भी हाथ आजमाने से नहीं चूकतीं।

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