Gandhi Ashram Garh Road Meerut पर है भूमाफिया की निगाह, सरकारी आदेशों की अनदेखी; अभी तक नहीं हुई कार्रवाई, राष्ट्रीय विरासतों को बेचने पर आमादा हैं गांधी आश्रम प्रबंध समिति के पदाधिकारी
Gandhi Ashram Garh Road Meerut खादी जगत का ऐतिहासिक केन्द्र और राष्ट्रीय धरोहर है मगर इन दिनों भूमाफिया और तंत्र की मिलीभगत के मकड़जाल में फंसकर तड़प रहा है। आश्रम की 86 हजार वर्ग गज जमीन को 29 वर्ष 11 माह की लीज पर देने तथा एक-एक हिस्से को बेचने की कोशिशों के ख़िलाफ़ बीते 9 अक्टूबर 2023 से सतत धरना जारी है। आँधी‑तूफ़ान और बारिश के बीच 480 दिन‑रात चला यह धरना 29 दिसंबर 2024 की रात ढाई बजे आगज़नी का शिकार हुआ, मगर फिर भी प्रदर्शनकारियों ने मोर्चा नहीं छोड़ा। यह धरना निरंतर जारी है और लोगों की आंखों की किरकिरी बनी हुई है।
राष्ट्रीय विरासत, जिसे बेचा नहीं जा सकता
1920 में आचार्य जे. बी. कृपलानी द्वारा स्थापित इस आश्रम को पंडित जवाहरलाल नेहरू और नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं का संरक्षण मिला था। केन्द्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ने पत्र संख्या D‑110 13(1)/2012‑KVI‑2 (7 फरवरी 2012) के जरिये स्पष्ट निर्देश दिया कि “खादी संस्थानों की भूमि केवल संपत्ति ही नहीं, सांस्कृतिक‑आध्यात्मिक धरोहर है; इसे बेचा या लीज पर नहीं दिया जा सकता।” बावजूद इसके, Gandhi Ashram Garh Road Meerut की ज़मीन के व्यावसायिक दोहन के प्रयास थम नहीं रहे।
Gandhi Ashram Garh Road Meerut का उत्पादन 3.30 करोड़ से घटकर 7 लाख
खादी ग्रामोद्योग आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 1997‑98 में आश्रम का वार्षिक उत्पादन 3 करोड़ 30 लाख रुपये था, लेकिन 2022‑23 में यह घटकर मात्र 7 लाख रुपये रह गया। श्रमिकों का कहना है कि “बिक्री‑लीज” की अफ़वाहों से कारीगर पलायन कर गए और उत्पादन चौपट हो गया।
धरना‑स्थल पर आगज़नी, बाल-बाल बचे आंदोलनकारी
Gandhi Ashram Garh Road Meerut की जमीन लीज पर देने के विरोध में 29 दिसंबर 2024 की रात दो बजे प्रदर्शनकारियों का तंबू‑त्रिपाल जलाकर खाक कर दिया गया—राम‑तिरंगा, हनुमान चालीसा, गांधी तस्वीर, सब राख हो गई। आरोप है कि यह हरकत आंदोलन दबाने के लिए कराई गई। घटना के बाद आश्रम परिसर की महिलाओं ने भी मोर्चा खोल दिया और यह आंदोलन एकदम मजबूती से आगे बढ़ रहा है।
लीज‑बिक्री के आरोपों की फेहरिस्त
- खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान (सीमान्त गांधी) पार्क समेत कई हिस्सों को निजी फर्मों को लीज पर देने का आरोप।
- 15,730 वर्ग जग जमीन जो उत्तर प्रदेश शासन ने गाँधी आश्रम को दी। वहाँ की प्रबंध समिति के 7 सदस्य व 6 बाहरी शिक्षा माफिया के साथ मिलकर 7500 वर्ग गज अपने नाम कर ली। जांच में ये सभी दोषी पाए गए।
- “साल फेयर” के नाम पर 800.33 वर्ग गज भूमि मात्र औपचारिक किराये पर पार्किंग के लिए दिए जाने की कोशिश।
- खसरा संख्या 4736 से 41 की कीमत लगभग 80-90 करोड़ है मगर गाँधी आश्रम समिति अनुमानित मूल्य 23 करोड़ में बेचना चाहती है।
प्रशासन पर उदासीनता और FIR का गतिरोध
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि 2017‑18 में खादी ग्रामोद्योग आयोग के निदेशों के बावजूद सम्बंधित विभाग ने FIR दर्ज नहीं की। खादी ग्रामोद्योग आयोग निदेशक व डिप्टी रजिस्ट्रार कार्यवाही नहीं करना चाहते, आरोप है कि उनपर सत्ताधारी नेताओं का भारी दबाव है।
आंदोलनकारियों की माँगें
- आश्रम‐भूमि की लीज‑बिक्री से जुड़े सभी समझौते निरस्त हों।
- 2012 के मंत्रालयी आदेश का पालन सुनिश्चित किया जाए।
- आगज़नी की उच्चस्तरीय न्यायिक जाँच और दोषियों पर आपराधिक मुक़दमा।
- खादी उत्पादन पुनर्जीवित कर मज़दूरों‑कर्मचारियों को रोजगार दिया जाए।
Gandhi Ashram Garh Road Meerut की लड़ाई कब तक
Gandhi Ashram Garh Road Meerut संरक्षण समिति के संयोजक अनंत कौशिक का कहना है, “जब तक सरकार कठोर कदम नहीं उठाती और मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई नहीं करती तब तक यह क्रमिक अनशन जारी रहेगा। यह राष्ट्र की धरोहर बचाओ आंदोलन देश‑भर के गांधी आश्रमों को जोड़कर जनान्दोलन में बदलेगा। देश भ्रष्टाचारियों से नहीं ईमानदार व्यक्तियों की वजह से है। Gandhi Ashram Garh Road Meerut की लड़ाई सिर्फ जमीन की नहीं, स्वतंत्रता आंदोलन की उस विरासत को सहेजने की है, जिसे महात्मा गांधी ने स्वावलम्बन और सत्याग्रह का प्रतीक बनाया था।”
Gandhi Ashram Garh Road Meerut में किन-किन मुद्दों पर है गतिरोध
- लीज पर दी गई जमीन की वैधता संदिग्ध: कर्मचारी संगठन का आरोप है कि वर्ष 2014 में 15,730 वर्ग गज ज़मीन को जिस संस्था को दिया गया, उसके रजिस्ट्रेशन और उद्देश्य को लेकर भारी अनियमितता है।
- 29 दिसंबर 2024 की रात आगजनी: धरने के पंडाल में आग लगने की घटना को आंदोलन दबाने की साज़िश बताया जा रहा है। अब तक इसकी जांच या एफआईआर दर्ज नहीं हुई है।
- उत्पादन में गिरावट: जहां एक समय यह आश्रम सालाना 3.30 करोड़ रुपये का उत्पादन करता था, वहीं अब यह घटकर सिर्फ 7 लाख रुपये रह गया है। कर्मचारी इसे जानबूझकर ढांचे को कमजोर करने की नीति बता रहे हैं।
- 800.33 वर्ग गज जमीन का नाममात्र किराये पर उपयोग: ‘साल फेयर’ के दौरान पार्किंग के नाम पर भूमि दी गई, जिसे कर्मचारी असंवैधानिक बताते हैं।
- खसरा संख्या 4736 से 4741 की भूमि: अनुमानतः 80–90 करोड़ रुपये मूल्य की भूमि बेचने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठे हैं।
Gandhi Ashram Garh Road Meerut न सिर्फ एक भूखंड है, बल्कि देश की आजादी की उस विरासत का जीवंत प्रतीक है, जिसे सुरक्षित रखना हर जागरूक नागरिक का दायित्व है। प्रशासनिक उदासीनता, भू-माफियाओं की सक्रियता और ऐतिहासिक संवेदनशीलता की अनदेखी इस मामले को और गंभीर बना रही है। अब देखना यह है कि क्या सरकार इस धरोहर को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएगी या फिर यह ऐतिहासिक स्थल भी धीरे-धीरे कागजों तक सिमट जाएगा।
आंदोलन की प्रमुख तस्वीरें
Gandhi Ashram Garh Road Meerut शहर की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चेतना का केन्द्र है
.1. ऐतिहासिक विरासत और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव
गांधी आश्रम, गढ़ रोड, मेरठ की स्थापना वर्ष 1920 में हुई थी। यह आश्रम महात्मा गांधी के ‘स्वदेशी आंदोलन’ और खादी प्रचार का प्रमुख केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के समय यह जगह केवल एक संस्थान नहीं थी, बल्कि सत्याग्रह, आत्मनिर्भरता और सामाजिक जागरूकता की प्रयोगशाला थी।
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, और जे.बी. कृपलानी जैसे नेता इससे जुड़े रहे। यह आश्रम खादी और ग्रामोद्योग के ज़रिये आर्थिक आज़ादी का प्रतीक बना।
2. खादी उत्पादन और कारीगरों को रोजगार
गांधी आश्रम मेरठ ने दशकों तक हजारों कारीगरों को स्थानीय रोजगार उपलब्ध कराया। खासकर 1980 और 1990 के दशक में करीब 3.30 करोड़ रुपये वार्षिक खादी उत्पादन होता था। सूत कातने, बुनाई, सिलाई, और तैयार वस्त्र बनाने का व्यापक कार्य चलता था। महिलाओं को स्वरोजगार देने में भी इसकी भूमिका अहम रही है।
3. सामाजिक और नैतिक शिक्षा का केंद्र
गांधी आश्रम स्कूलों, कॉलेजों और युवाओं के लिए एक प्रेरणास्थल रहा है: सत्य, अहिंसा, स्वावलंबन जैसे गांधीवादी सिद्धांतों की शिक्षा दी जाती थी। स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर जनसभाएं, भाषण प्रतियोगिताएं और प्रदर्शनी आयोजित की जाती थीं।
4. शहरीकरण के बीच ‘हरित क्षेत्र’ की भूमिका
गढ़ रोड जैसे तेज़ी से विकसित होते शहरी क्षेत्र में गांधी आश्रम एक हरित, शांतिपूर्ण परिसर है जो मेरठ शहर के लिए फेफड़ों की तरह काम करता है। बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए यह एक ओपन स्पेस है जो आज भी सामाजिक मेलजोल का स्थान बना हुआ है।
5. गरीबों के लिए सेवा केन्द्र
आश्रम के पास गरीबों के लिए सस्ते वस्त्र और अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं उपलब्ध कराने की परंपरा रही है। खादी भंडार, प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र, और सामाजिक शिविरों का आयोजन समय-समय पर होता रहा है।
6. युवाओं के लिए प्रेरणा स्थल
स्कूली बच्चों और कॉलेज छात्रों को ‘खादी अपनाओ, देश बचाओ’ जैसे अभियानों के लिए प्रेरित किया जाता रहा है। युवाओं को रोजगार प्रशिक्षण – जैसे सिलाई, बुनाई, और खादी मार्केटिंग – में प्रशिक्षित करने की पहलें होती थीं।
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