सबको मिले हैं दुख यहां…

बहुत बेचैनियों भरी हैं ये सुकून की राहें ,
रास्तों में ही उलझ रहा हूं‌ धागों की तरह !!

समझो जरा मेरी भी इन लाचारियों को ,
भीग रहा हूं बरसात में कागज की तरह !!

अभी कितने और बाकी हैं ये तेरे इम्तिहान ,
जीतके भी रोया हूं खाली खंडहर की तरह !!

न रोको मुझे आज कहने दो हाल-ए-दिल ,
गया तो न लौटूंगा बीते बचपन की तरह !!

सुनो तमाशा न बनाना मेरी मज़बूरियों का तुम ,
सबको मिले हैं दुख जरूरी सवालों की तरह !!

जैसे उमस भरी धूप को है बारिशों का इंतज़ार,
बरसना है तुमको भी किसी बादल की तरह !!

यूं तो मेरी अभी उम्मीद बहुत बाकी हैं “उससे”,
पर अच्छा लगता है सावन, “सावन” की तरह !!

नमिता गुप्ता “मनसी”

मेरठ, उत्तर प्रदेश